जाना वाणी जयाराम का गोलोक
जाना वाणी जयाराम का गोलोक उनके होने से भी ज्यादा मुखरित है आज सुबह से ही आकाश में ये गीत गूँज रहा है -बोले रे पपीहरा ,पपीहरा नित् घन बरसे नित मन प्यासा एक मन तरसे ....
बोले रे पपीहरा पपीहराबोले रे पपीहरा पपीहरानित् घन बरसे नित मन प्यासानित मन प्यासा नित मन तरसेबोले रे पपीहरा पपीहराबोले रे पपीहरा पपीहराबोले रे पपीहरा
पलकों पर एक बूँद सजाएबैठी हूँ सावन ले जायेजाये पी के देस में बरसेजाये पी के देस में बरसेनित मन प्यासा नित मन तरसेबोले रे पपीहराबोले रे पपीहरा पपीहराबोले रे पपीहरा
सावन जो संदेसा लाएसावन जो संदेसा लाएमेरी आँख से मोती पाएमेरी आँख से मोती पाएजान मिले बाबुल के घर सेजान मिले बाबुल के घर सेनित मैं प्यासा नित मैं तरसेबोले रे पपीहरा पपीहराबोले रे पपीहरा पपीहराबोले रे पपीहरा
कहीं नहीं जाते है गीत गायक संगीत की धुन में बावरा मन और उसकी पीर बनी रहती है आकाश में। वैसे भी आत्मा अजर अमर अविनाशी है जिसे हम मरना कहते हैं वह ऊर्जा -पदार्थ का संरक्षण है अंतरण है एक का दूसरे में। पदार्थ का ऊर्जा में अंतरण मौत और ऊर्जा का पदार्थीकरण जन्म कहलाता है। मरता कुछ नहीं है।
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