गीत -संगीत,संगीत की बंदिशें अपने समय का कथानक ,कथावस्तु से आगे निकल पूरा परिवेश लिए होते हैं
गीत -संगीत,संगीत की बंदिशें अपने समय का कथानक ,कथावस्तु से आगे निकल पूरा परिवेश लिए होते हैं साथ में हमारा भी हम जो उस संगीत का "अदाकारा -जन" का रसमय संसार होते हैं रसावस्था और राग होते हैं वह तादात्म्य भाव -विरेचन हमारे अंदर ही तो होता रहा है।
आज भी कुछ गीत सुनता हूँ तो एक हुक से उठती है ऐसा ही एक गीत रहा है -पंख होते तो उड़ आती रे रसिया ओ बालमा ,तोहे दिल का दाग दिखलाती रे ,इसी भावविस्तार का एक और गीत रहा है -चला है कहाँ दुनिया इधर है तेरी प्यार इधर है तेरा आजा ओ आजा ओ आजा ....
"चंदा मामा दूर के पुए पकाए बूर के "गीत से ज्यादा इसमें बंसी की टेर वर्तमान का अतिक्रमण करतीहुई उस काल खंड में पहुँच जाती है जब हमारे चहेते सुक्खन मामा होते थे बांसुरी के संग ,तबले पे उँगलियों का जादू बिखेरते -बालक वीरू को गवाते गुनगुनाते रीझते हुए। उनका कहरवा उन जैसा ही था अद्भुत आकर्षण सम्मोहन लिए।
वर्तमान के सीने को चीरते हुए सुने हुए गीत हमें उसी कालखंड में ले जाके छोड़ देते हैं -जब हमारा जीवन रागात्मकता किए तरल सा रहा होता है।
गीत -हमसफ़र मेरे हमसफ़र पंख तुम परवाज़ हम ,ज़िंदगी का गीत हो तुम, गीत की आवाज़ हम।
किशोरावस्था के आँगन में ले जाके छोड़ देता है उस दौर में जब बादलो के रंग मनमोहते थे किसी की गोद में सप्तसुरों से बादलों को निहारते हम अनचीन्हें भविष्य के आगोश में जब हम गुम हो जाते थे।
(ज़ारी )
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